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मदरहुड विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन —डिजिटल युग में मानवाधिकार और न्याय पर हुआ मंथन।

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मदरहुड विश्वविद्यालय रुड़की में "डिजिटल युग में मानवाधिकार के रूप में सामाजिक-आर्थिक न्याय: आगे की चुनौतियों पर पुनर्विचार" विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य शुभारंभ


रुड़की। मदरहुड विश्वविद्यालय रुड़की में ‘डिजिटल युग में मानवाधिकार के रूप में सामाजिक-आर्थिक न्याय: आगे की चुनौतियों पर पुनर्विचार’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में देशभर से 17 राज्यों के 510 शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य डिजिटल क्रांति के दौर में न्याय, समानता और मानवाधिकारों की रक्षा के नए आयामों पर विचार-विमर्श करना रहा।


कार्यक्रम का शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. नरेन्द्र शर्मा एवं विशिष्ट अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।


मुख्य अतिथि प्रो. डॉ.जय शंकर सिंह, कुलपति, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटियाला पंजाब ने अपने विशेष संबोधन में कहा कि “डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक सशक्त कानूनी ढाँचा तैयार करना समय की मांग है। न्याय के सिद्धांतों को डिजिटल सीमाओं से परे लागू करना और नई पीढ़ी के न्यायविदों को डिजिटल न्याय की जटिलताओं से अवगत कराना हमारा दायित्व है।” उन्होंने मानवाधिकारों के विकास और उनकी आधुनिक प्रासंगिकता पर भी विस्तार से चर्चा की।


अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. डॉ. नरेन्द्र शर्मा, कुलपति, मदरहुड विश्वविद्यालय ने कहा कि “डिजिटल परिवर्तन ने जहाँ अनेक अवसर पैदा किए हैं, वहीं सामाजिक-आर्थिक असमानता की खाई को भी बढ़ाया है। अब आवश्यकता है कि हम प्रौद्योगिकी को न्याय और समानता के साधन के रूप में उपयोग करें।” उन्होंने डेटा गोपनीयता, डिजिटल साक्षरता और डिजिटल डिवाइड को पाटने की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया।


मुख्य वक्ता डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता ने अपने उद्बोधन में कहा कि “सूचना और प्रौद्योगिकी तक पहुँच अब एक बुनियादी मानवाधिकार है। प्रत्येक नागरिक को इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए।” उन्होंने साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के नैतिक उपयोग और बदलते रोजगार परिदृश्य को लेकर ठोस कानूनी ढांचे की आवश्यकता बताई।


डॉ. ए. बी. जायसवाल ने नीतिगत सुधारों पर बल देते हुए कहा कि “सरकार और शैक्षणिक संस्थानों को मिलकर युवाओं को भविष्य की डिजिटल चुनौतियों के लिए तैयार करने हेतु समग्र पाठ्यक्रम तैयार करना चाहिए।”



एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा से पधारे ए. के. भट्ट ने कहा कि “सामाजिक-आर्थिक न्याय तभी संभव है जब समाज के सबसे कमजोर तबके को डिजिटल कौशल से लैस किया जाए।”

के. पी. ला कॉलेज, प्रयागराज के प्राचार्य डॉ. संजय कुमार बरनवाल ने डिजिटल प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को अनिवार्य बताते हुए कहा कि ब्लॉकचेन जैसी तकनीकें सरकारी सेवाओं को अधिक कुशलता और निष्पक्षता से नागरिकों तक पहुँचा सकती हैं।


राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक एवं विधि संकाय के अधिष्ठाता प्रो. (डॉ.) जयशंकर प्रसाद श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों, शिक्षकों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “यह संगोष्ठी डिजिटल युग में सामाजिक-आर्थिक न्याय को मानवाधिकार के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक सार्थक कदम है।”


कार्यक्रम का संचालन सहायक आचार्य सुश्री स्नेहा भट्ट द्वारा किया गया


संगोष्ठी के सफल आयोजन में विधि संकाय के अध्यापकगण — प्रो. (डॉ.) नीरज मलिक, डॉ. नलनीश चंद सिंह, डॉ. विवेक सिंह, डॉ. सन्दीप कुमार, डॉ. विकास तिवारी, सतीश कुमार, विवेक कुमार, अमन सोनकर, मधुर स्वामी, सुजीत कुमार तिवारी, डॉ. जुली गर्ग, श्रीमती रेनू तोमर, श्रीमती अनिंदिता चटर्जी, सुश्री समिधा गुप्ता और श्रीमती व्यंजना सैनी का विशेष योगदान रहा।


कार्यक्रम का समापन इस संकल्प के साथ हुआ कि डिजिटल युग में सामाजिक-आर्थिक न्याय को मानवाधिकार के रूप में सशक्त रूप से स्थापित करने हेतु सामूहिक प्रयास निरंतर जारी रहेंगे

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